चोटी की पकड़–92
सिपाही ने कहा, "वह देख, बरामदे का दरवाजा बंद है। वहाँ, माल की निगरानी करनेवाला जाता है।"
"वहाँ कोई रहता नहीं?"
"नहीं।"
"तुमको और कुछ मालूम हुआ?"
"हाँ, जमादार ने सबको हाज़िर रहने के लिए कहा है, और यह खबर है कि रानीजी ने इनाम भेजा है, सब सिपाही इस कोठी के आ जाएंगे, तब दिया जाएगा।"
अठाईस
रात आठ का समय होगा। प्रमोदवाले कमरे में राजा साहब बैठे हैं। कुल दरवाजे और झरोखे खुले हैं बड़े-बड़े। सनलाइट का प्रकाश। तेजी से, लेकिन बड़ी सुहानी होकर हवा आती हुई।
दूर तक सरोवर और आकाश दिखता हुआ। सरोवर में बत्तियों की जोतवाले कमल बिंबित। कहीं-कहीं हवा से होता लहरों का नाच दिखता हुआ।
चारों ओर साहित्य, संगीत, कला और सौंदर्य का जादू। साजिंदे बैठे हैं।
कान के बाहर से साज चढ़ा कर बजाने की आँख देख रहे हैं। बेबसी से बचने की उम्मीद भी है। प्याले चल चुके हैं।
फ़र्श पर बिछी ऊँची गद्दी पर एजाज और राजा बैठे हैं। एक बगल प्रभाकर है। नीचे कालीन बिछी चद्दर पर साजिंदे।
राजा साहब ने एजाज से पूछा, एजाज ने सम्मति दी। साजिंदों ने अपने-अपने साज पर हाथ रखा। एजाज ने गाया-